देवहूति माता और कर्दम मुनि कथा

देवहूति माता और कर्दम मुनि कथा

कर्दम मुनि एक तपस्वी थे। उन्होंने सरस्वती नदी के पास बिंदु सरोवर पर 10,000 वर्ष तपस्या की। वह तपस्या पूर्ण होने के बाद वापिस अपने स्थान पर गए और उनका विवाह देवहूति माता से हुआ। वह सदैव भगवान के ध्यान में लीन रहते थे। वह अपने तपस्या में इतने लीन हो गये की देवहूति माता को भी भूल गए।

पर माता दिन रात उनकी सेवा में व्यस्त थी। उन्होंने अच्छे से पत्नी धर्म निभाया, कभी कोई शिकायत नहीं की, जब काफी समय बीत गया उनका रूप रंग मुरझा गया। एक दिन कर्दम मुनि की आँखे खुलती है तो वह देखते है देवहूति माता को और उनसे पूछते हैं “आप अपना परिचय दे देवी तब वह बताती है में आपकी पत्नी हूँ स्वामि ” जैसे ही माता ने उन्हें स्वामी कहा तब उन्होंने पहचाना ये तो मेरी पत्नी देवहूति है।

कर्दम मुनि उनकी सेवा से बहुत ही प्रसन्न हुए। तत्पश्चात उन्होंने देवी को सभी प्रकार के सुख दिए एक खुबसूरत महल, नौकर चाकर, वाहन आदि पर देवहूति माता ने अपनी सेवा नहीं रोकी। हर सुख कर्दम मुनि ने उन्हें दिए। देवहूति माता ने अपना विवाहित जीवन बहुत हो आनंद से व्यतीत किया। कर्दम मुनि इतने प्रसन्न हुए की उन्होंने वरदान मांगने को कहा। तब देवहूति माता ने एक पुत्र की इच्छा प्रकट की। कर्दम मुनि ने देवहुति माता से कहा की जैसे ही उन्हें पुत्र की प्राप्ति होगी वह तपस्या करने जंगल चले जायेंगे पर उन्हें एक के बाद एक 9 कन्याएँ हुई।

तब कर्दम मुनि ने भगवान् से प्राथना की हे भगवान यह क्या हो रहा है ? मैं तो आपकी भक्ति भजन करना चाहता हूँ पर मैं अपनी जिम्मेदारियों में फसता जा रहा हूँ। तब भगवान की कृपा से उन्हें भगवान कपिल की प्राप्ति हुई। हमारे शास्त्रों में दो कपिल हुए। एक कपिल मुनि और दूसरे कपिल भगवान। और ब्रहम्मा जी उनकी 9 कन्याओं के लिए 9 वर लेकर आये। उनके साथ विवाह के लिए।

कला – मरीचि
अनुसुईया – अत्रि
श्रद्धा – अंगिरा
हविर्भु – पुलस्त्य
गति – पुलह
क्रिया – क्रतु
खियाती – भृगु
अरुंधति – वषिष्ठ
शान्ति – अथर्वा

ऐसा शास्त्रों में कहा गया है की पुत्र होना आवश्यक है क्योकि पुत्र आध्यात्मिक उन्नति में साहयता करता है। कन्या सदा किसी न किसी के संरक्षण (Protection) में रहती है, पहले माता-पिता या भाई के संरक्षण में, पति के संरक्षण में और फिर पुत्र के संरक्षण में, क्योकि स्त्री का हृदय बहुत ही कोमल होता है। अगर स्त्री इन संरक्षण से बाहर जाती है तो उसका मानसिक, शारीरिक शोषण होता है।

कन्या को 10 -20% आध्यात्मिक ज्ञान माता-पिता से मिलता है, 50 % पति से, 50 % पुत्र से। क्योकि देवहूति माता ने आधा आध्यात्मिक ज्ञान माता-पिता से प्राप्त किया और कुछ पति से, पर उनमे अभी और आध्यात्मिक ज्ञान की इच्छा है सो अब वह बाकि का ज्ञान पुत्र से प्राप्त करना चाहती थी।

जब देवहुति माता को 9 कन्याएँ हुई। तब कर्दम मुनि ने उनसे तपस्या करने को कहा, तब भगवान की कृपा से उन्हें भगवान कपिल प्राप्त हुए। भगवान कपिल ने जो ज्ञान अपनी माता को दिया वह आज तक इतिहास में किसी पुत्र ने अपनी माता को नहीं दिया। गर्भ में एक आत्मा कैसे प्रवेश करती हैं? इसका विस्तृत जानकारी भगवान कपिल ने इस प्रकार दिया। ये सब श्रीमद भागवतम के Canto-3 के chapter- 31 के text 1-29 हैं।

सबसे पहले हम शरीर नहीं आत्मा है। आत्मा ना घुलती है, ना गिली होती है, ना सूखती है, ना कोई काट सकता है, न कोई मार सकता है, ना जला सकता है। आत्मा अमर है शरीर नश्वर है। आप इसे बिलकुल ऐसे समझ सकते है जैसे गाड़ी के अंदर ड्राइवर बैठा होता है उसी प्रकार इस शरीर के अन्दर आत्मा बैठी रहती है। इस संसार में हम सब जिव आत्माये है।

जिव आत्मा बादलों के उप्पर बैठी होती हैं, फिर जब वर्षा होती है तब ये आत्मा कोई भी फसल पर बैठती है जैसे गेहूं, गन्ना, सब्ज़ी, फल आदि जब पुरुष ये सब्जी या फल खाता है तो यह आत्मा उसके पेट के रास्ते जाकर खून में प्रवेश करती है। तब इस खून से आत्मा वीर्य में प्रवेश करती है, यदि स्त्री खाने का सेवन करती है तो ये आत्मा मल के रास्ते बाहर निकल जाती है।

जब पुरुष स्त्री संग करता हैं तो यह आत्मा स्त्री के गर्भ में प्रवेश करती है। वह कहलाता है गर्भधारण। तब आत्मा यानि शुक्राणु अंडे में प्रवेश कर चुकी होती है। पाँचवे दिन आत्मा का धीरे -धीरे शरीर बन्ने लगता है और वह बुलबुले के समान हो जाता है। दसवीं रात में बेर के समान हो जाता है। और तीसरी महीने में उस आत्मा का रक्त, हड्डी, मांस से बनकर एक शरीर तैयार हो जाता है।

baby-cycle

चौथे महीने में बाक़ी के अंग बन जाते है। पाँचवे महीने में बच्चे को भूख लगने लगती है। छठे महीने में बच्चा झीली से ढक जाता है। सात से लेकर नौ महीने बच्चे के लिए बहुत दुःख और तकलीफ से भरे होते है। क्योकि जैसा माँ खाना खाती है बच्चे पर उसका उल्टा ही असर पड़ता है। माँ तीखा खाना कहती है तो गर्भ में बच्चे को जलन होती है और छोटे -छोटे कीड़े भी काटते है।

तब बच्चा दर्द से तड़प कर भगवान से प्रार्थना करता है “हे प्रभु मुझे इस पिंजरे से बाहर निकालो वचन देता हूँ इस बार बाहर निकल कर आपकी भक्ति करूँगा। पर जैसे ही वह आत्मा इस संसार में आती है माया उसे पकड़ लेती है।

और वह आत्मा सब भूल जाती है की गर्भ में उसने कितने कष्ट पाए है। ये शरीर भगवान ने हमें भक्ति और भजन करने के लिए दिया है। पर हम भगवान को भूलकर खाने, सोने, रक्षा करने में और मैथुन करने में लगे है। ये चारो काम तो पशु भी कर रहा है तो हम लोगो में और पशु-पक्षी में कोई भेद नहीं है। इसलिए हमें भगवान को बहुत गंभीरता से लेना होगा।

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