एकादशी व्रत कथा

एकादशी व्रत कथा

सतयुग में मुर नामक एक भयानक व बलवान राक्षस था। उसने देवराज इंद्र सहित विवस्वान, अग्नि, वायु, चंद्र, 8 वसु, सभी देवताओं को पराजित कर दिया और उन सभी का सिंहासन छीन लिया। उसके भय से सभी देवता भगवान शिव के पास पहुँचे और उनसे प्रार्थना की ” हे शिव जी हमारी सहायता करे हम अपने ग्रहों से नीचे गिर गए है। तब शिव जी के कहने पर सभी देवता भगवान विष्णु की शरण में गए। तब सभी देवताओं ने भगवान विष्णु जी की स्तुति की और मुर राक्षस से रक्षा करने की प्रार्थना की।

भगवान विष्णु आश्चर्य से पूछते है ये मुर राक्षस कौन है जिससे तुम सभी देवता इतने भयभीत हो? तब देवता के राजा इंद्रा बताते है की वह चंद्रावती नगरी का राक्षस राजा नाड़ीजंघा राक्षस का पुत्र है जो ब्राह्मण कुल में जन्मा है। जिसने इंद्र, अग्नि, वरुण, यम, वायु, ईश, चंद्रमा, नैऋत आदि सबके स्थान पर अधिकार कर लिया है. यह सुन भगवान विष्णु ने देवताओं को मुर राक्षस के वध का आश्वासन दिया।

तब भगवान ने उसके राज्य पर चढ़ाइए की। इसके बाद भगवान व मुर राक्षस में भीषण युद्ध हुआ। लेकिन 1 हजार वर्ष युद्ध चलने पर भी भगवान विष्णु मुर राक्षस पर विजय नहीं पा सके। तब थककर भगवान बद्रिकाश्रम चले गए। जहां उन्होंने हीमवती नामक गुफा में विश्राम किया। पर जब वे योगनिद्रा में थे, तब मुर भी पीछे-पीछे वहां पहुंच गया। उन्हें विश्राम करते देख मुर ने सोचा अच्छा मौका है इसे यही खत्म कर देता हूँ।

इतना वह सोच ही रहा था की एक सुन्दर, कोमल, उज्ज्वल व कांतिमय रूप वाली एक देवी कन्या भगवान के दिव्या शरीर से प्रकट हुई। जिसके हाथ में अनेक प्रकार के अस्त्र और शास्त्र थे। जैसे ही देवी ने आक्रमण किया वह राक्षस इधर – उधर बिखरने लगा, जितना बल राक्षस में था उससे कही 100 गुना शक्ति उस देवी में थी। और ये देखकर राक्षस बड़ा हैरान था, जब वह राक्षस देवी को मार ना सका तब देवी ने सर धर से अलग कर दिया।

जब भगवान नारायण योग निद्रा से जागे तो उन्होंने देवी से पूछा “तुम कौन हो ?” तब देवी ने उत्तर दिया “हे प्रभु! में आपकी दासी हूँ ” राक्षस को मरते हुए देखकर भगवान को बड़ी प्रसन्नता हुई और देवी की प्रशंसा करने लगे और कहा “हे देवी तुमने समस्त देवताओं को इस राक्षस से मुक्त किया हैं कोई वरदान मांगो “।

तब देवी कहती है “आप मुझे ऐसा वर दो की आज के दिन जो भी मेरी उपासना करे उसके पूर्व जन्म के सारे पाप नष्ट हो जाये ” तब भगवान उसे आशीर्वाद देते है “तथास्तु” और कहा की तुम्हारा जन्म एकादशी के दिन हुआ है, इसलिए तुम एकादशी के नाम से जानी जाओगी।

एकादशी मतलब होता है “एक दासी ” जो भी मेरे भक्त तुम्हारा उपवास रखेंगे में उनके सभी पाप नष्ट कर दूंगा”।

 

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